समन्दर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं…

समन्दर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तेरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

तेरी यादों की ख़ुश्बू खिड़कियों में रक़्स करती है
तेरे ग़म में सुलगता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

न जाने हो गया हूँ इस क़दर हस्सास मैं कब से
किसी से बात करता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

मैं सारा दिन बहुत मसरूफ़ रहता हूँ मगर ज्योहीं
क़दम चौखट पे रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

हर एक मुफ़्लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

बड़े लोगों के ऊँचे बद-नुमा और सर्द महलों को
ग़रीब आँखों से तकता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

तेरे कूचे से अब मेरा तअ’ल्लुक़ वाजिबी सा है
मगर जब भी गुज़रता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मेरे दिल पर
मैं जब भी हँसता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं..!!

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