शिक़स्त ए ज़र्फ़ को पिंदार ए रिंदाना नहीं कहते

शिक़स्त ए ज़र्फ़ को पिंदार ए रिंदाना नहीं कहते
जो मांगे से मिले हम उसको पैमाना नहीं कहते,

जहाँ साक़ी के पा ए नाज़ पर सज़्दा ज़रूरी हो
वो बुतखाना है उसको रिंद मयखाना नहीं कहते,

जुनूं की शर्त ए अव्वल ज़ब्त है और ज़ब्त मुश्किल है
जो दामन चाक कर ले उसको दीवाना नहीं कहते,

जो हो जाए किसी का मुस्तकिल बे शिरकत ए ग़ैरे
वो दिल काबा है उस दिल को सनमखाना नहीं कहते,

निहायत शुक्रिया इस पुर्सिश ए अहवाल का लेकिन
हमें आदत नहीं, हम अपना अफ़साना नहीं कहते,

जहाँ हर वक़्त एक महफ़िल सजी हो तेरी यादों की
उसे इशरत कदा कहते हैं गमखाना नहीं कहते,

गरज़ कुछ भी हो हमको याद तो रखता है हर लहज़ा
अदू ए जाँ को भी अपने हम कभी बेगाना नहीं कहते..!!

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