गुलों में रंग भरे बाद ए नौ बहार चले
गुलों में रंग भरे बाद ए नौ बहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले, क़फ़स
Faiz Ahmad Faiz
गुलों में रंग भरे बाद ए नौ बहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले, क़फ़स
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुए ग़म आते हैं जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं,
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं, हदीस ए यार
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हाथ में तेरा हाथ नहीं सद शुक्र कि अपनी रातों में
तुझे पुकारा है बे इरादा जो दिल दुखा है बहुत ज़ियादा, नदीम हो तेरा हर्फ़ ए शीरीं तो
फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे जाने किस किस को आज रो बैठे, थी मगर इतनी राएगाँ भी
हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने धोके दिए क्या क्या हमें बाद ए सहरी ने, हर मंजिल
रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम मौसम ए गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम,
फिर आईना ए आलम शायद कि निखर जाए फिर अपनी नज़र शायद ताहद्द ए नज़र जाए, सहरा पे
नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं, जो दिल