आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो
आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो क्यूँ मज़लूम ओ गरीब को बेवजह सता …
आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो क्यूँ मज़लूम ओ गरीब को बेवजह सता …
आरज़ी ताक़तें तुम्हारी है पर ख़ुदा हमारा है अपने अक्स पर न इतराओ आईना हमारा …
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब ? इंसाँ इंसाँ …
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला मेरे स्वागत को हर एक …
वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता हँसता है मुझे देख के नफ़रत …
क्यूँ ज़मीं है आज प्यासी इस तरह ? हो रही नदियाँ सियासी इस तरह, जान …
किस के नाम लिखूँ जो अलम गुज़र रहे हैं मेरे शहर जल रहे हैं मेरे …
वतन को कुछ नहीं ख़तरा निज़ाम ए ज़र है ख़तरे में हक़ीक़त में जो रहज़न …
खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े सीढ़ियाँ आती रहें साँप का ख़ाना …