रिहा कर मुझे या सज़ा दे ऐ आदिल
कोई तो फ़ैसला तू सुना दे ऐ आदिल,
यूँ असीरी में जीना तो है तौहीन मेरी
चाहे मुझे दार पर चढ़ा दे ऐ आदिल,
कहाँ अदल मुझको ज़मीन पर मिलेगा
कोई रास्ता ही तू दिखा दे ऐ आदिल,
मुझे अगली तारीख में अब या ख़ुदारा
क़यामत का दिन ही बता दे ऐ आदिल,
वो मुज़रिम है उसकी जगह है जेल
अब तो उसे तख़्त से हटा दे ऐ आदिल,
रियाया पे जो क़वानीन चल रहे हैं यहाँ
वही इन हाकिमों पे चला दे ऐ आदिल,
फक़त जो क़िताबों में दम ले रहे हैं
ऐसे क़वानीन कुल जला दे ऐ आदिल,
कहीं अब मैं न अपनी अदालत लगा लूँ
मेरे मुज़रिमों को तू सज़ा दे ऐ आदिल,
इन वकीलों का बकना बहुत हो चुका है
अब अपनी हक़ीक़त दिखा दे ऐ आदिल,
कभी भाग पायें न जिस से दौर ए ग़ासिब
अब कोई जेल ऐसी तू बना दे ऐ आदिल..!!