ज़माना आया है बेहिजाबी का आम…
ज़माना आया है बेहिजाबी का आम दीदार ए यार होगासुकूत था पर्दादार जिसका वो राज़ …
ज़माना आया है बेहिजाबी का आम दीदार ए यार होगासुकूत था पर्दादार जिसका वो राज़ …
ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या हैकि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ …
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँमिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ, सितम हो कि हो …
सितारों से आगे जहाँ और भी हैंअभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं, तही ज़िंदगी …
लिखना नहीं आता तो मेरी जान पढ़ा करहो जाएगी तेरी मुश्किल आसान पढ़ा कर, पढ़ने …