कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया…
कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते ये बादल उड़ के आते हैं …
कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते ये बादल उड़ के आते हैं …
पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना या फिर चलो तो राह के पत्थर …
गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी का जाम बाँधा है तलाश ए दर्द से मंज़िल …
नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है अपनी करतूत छुपाये हुए आ जाते है, …
कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, …
लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे महसूस हो रही है ख़ुद अपनी कमी …
ख़ुशी ने मुझको ठुकराया है दर्द ओ गम ने पाला है गुलो ने बे रुखी …
इश्क़ मैंने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में और तेरा दिल लिखा शहरियत के ख़ाने …