जब इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी…
जब इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी ए कामिल को तब जा के कहीं हमको ‘ग़ालिब’ का ख़याल आया, तुर्बत है कहाँ उस की मस्कन था कहाँ …
जब इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी ए कामिल को तब जा के कहीं हमको ‘ग़ालिब’ का ख़याल आया, तुर्बत है कहाँ उस की मस्कन था कहाँ …
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है एक धुंध से आना है एक धुंध में जाना है, ये राह कहाँ से है ये …