किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई ऐ मेरे ख़ुदा
किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई ऐ मेरे ख़ुदा नफ़रत ही दे रही है दिखाई …
किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई ऐ मेरे ख़ुदा नफ़रत ही दे रही है दिखाई …
तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहाँ बनाया कैसी हसीं ज़मीं बनाई क्या आसमां बनाया, मिट्टी …
यहाँ मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ ? यहाँ जीने की तमन्ना कौन करे ? ये …
ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ बस अपने आप को मंज़ूर हो जाऊँ, …
जो नेकी कर के फिर दरिया में उसको डाल जाता है वो जब भी दुनिया …
लेता हूँ उस का नाम भी आह ओ बुका के साथ कितना हसीन रिश्ता है …
ऐ लिखने वाले आख़िर तू ही क्यूँ लिखता है ? है ये दर्द सबको फिर …
ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़ ए …
किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई मेरे ख़ुदा नफ़रत ही अब दे रही है दिखाई …