तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहाँ बनाया

तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहाँ बनाया
कैसी हसीं ज़मीं बनाई क्या आसमां बनाया,

मिट्टी से बेल बूटे क्या ख़ुश नुमा उगाया
पहना के सब्ज़ ख़िलअत उनको जवाँ बनाया,

ख़ुश रंग और ख़ुशबू गुल फूल हैं खिलाएँ
इस खाक़ के खंडहर को क्या गुलिस्ताँ बनाया,

मेवे लगाये क्या क्या ख़ुश ज़ायका रसीले
चखने से जिनके मुझको शीरीं दहाँ बनाया,

सूरज बना के तूने रौनक जहाँ को बख्शी
रहने को फिर हमारे महफूज़ मकाँ बनाया,

प्यासी ज़मीं के मुँह में मीना का टपकाया पानी
और बादलों को तू ने मीना का निशाँ बनाया,

ये प्यारी प्यारी चिड़ियाँ फिरती है जो चहकती
क़ुदरत ने तेरी उनको तस्बीह ख़्वाँ बनाया,

तिनके उठा उठा कर लाएँ कहाँ कहाँ से
किस खूबसूरती से फिर आशियाँ बनाया,

ऊँची उड़े हवा में बच्चो को पर ना भूले
उन बे परों का इनको रोज़ी रसां बनाया,

रहमत से तेरी क्या क्या हैं नेमते मयस्सर
उन नेमतो का मुझ को है कद्र दां बनाया,

आब ए रवां के अंदर मछली बनाई तू ने
मछली के तैरने को आब ए रवाँ बनाया,

हर चीज से है तेरी कारीगरी टपकती
ये कारखाना तू ने था कब रायगाँ बनाया..!!

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