अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रखा है…
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रखा है मगर चराग़ ने लौ को सँभाल रखा है, …
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रखा है मगर चराग़ ने लौ को सँभाल रखा है, …
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त …
गिले फ़ुज़ूल थे अहद ए वफ़ा के होते हुए सो चुप रहा सितम ए नारवां …
थक गया है मुसलसल सफ़र उदासी का और अब भी है मेरे शाने पे सर …
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला, …
दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें, …
अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए बोल ऐ हवा ए शहर किधर …
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं ‘फ़राज़’ अब ज़रा लहजा बदल के देखते …
जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना मुझे गुमाँ भी ना हो और …
किताबों में मेरे फ़साने ढूँढते हैं नादां हैं गुज़रे ज़माने ढूँढते हैं, जब वो थे …