ग़ैरत ए इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी
ग़ैरत ए इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी वो भी दिन थे कि रह ओ …
ग़ैरत ए इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी वो भी दिन थे कि रह ओ …
दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ …
हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे कि हमको दस्त ए ज़माना से …
मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं लाख समझाया कि इस महफ़िल में अब …
क्या ऐसे कम सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे जो मुस्तक़िल सुकूत से दिल को लहू …
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रखा है मगर चराग़ ने लौ को सँभाल रखा है, …
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त …
गिले फ़ुज़ूल थे अहद ए वफ़ा के होते हुए सो चुप रहा सितम ए नारवां …
थक गया है मुसलसल सफ़र उदासी का और अब भी है मेरे शाने पे सर …
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला, …