किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई ऐ मेरे ख़ुदा
किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई ऐ मेरे ख़ुदा नफ़रत ही दे रही है दिखाई …
किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई ऐ मेरे ख़ुदा नफ़रत ही दे रही है दिखाई …
हम से तो किसी काम की बुनियाद न होवे जब तक कि उधर ही से …
हम न निकहत हैं न गुल हैं जो महकते जावें आग की तरह जिधर जावें …
नदी के पार उजाला दिखाई देता है मुझे ये ख़्वाब हमेशा दिखाई देता है, बरस …
कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिए कुछ को लेकिन आसमानों के खज़ाने …
अज़ीब ख़्वाब था उसके बदन पे काई थी वो एक परी जो मुझे सब्ज़ करने …
न घर है कोई, न सामान कुछ रहा बाक़ी नहीं है कोई भी दुनिया में …
किस तवक़्क़ो’ पे क्या उठा रखिए ? दिल सलामत नहीं तो क्या रखिए ? लिखिए …
किस को मालूम है क्या होगा नज़र से पहले होगा कोई भी जहाँ ज़ात ए …