किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई ऐ मेरे ख़ुदा

किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई ऐ मेरे ख़ुदा
नफ़रत ही दे रही है दिखाई ऐ मेरे ख़ुदा,

अम्न ओ आमाँ से ख़ाली दुनियाँ क्यूँ हो गई ?
तू ने तो न थी ऐसी बनाई ऐ मेरे ख़ुदा,

ज़हनो पे अब सवार बस फ़िक्र ए मआश है
मिल जाए काश भूक से रिहाई ऐ मेरे ख़ुदा,

जिसका भी जितना भी यहाँ चलता है ज़ोर
उन सब ने क़यामत ही है बरपाई ऐ मेरे ख़ुदा,

बिन्त ए हव्वा की आहें जो दामन बचाते निकलें
तुझे भी तो देती ही होंगी सुनाई ऐ मेरे ख़ुदा,

फ़ितना ओ शर है क्यूँ कर इतना उरूज़ पर ?
दबती ही क्यूँ जा रही है भलाई ऐ मेरे ख़ुदा,

कर के दर गुज़र खताएँ हम पे रहम हो मौला
कर दे ख़त्म अब फिज़ाएं वबाई ऐ मेरे ख़ुदा,

तेरी याद से हुए गाफ़िल तो सुकूं कैसे मिले
लौ भी तो न तुझ से हम ने लगाईं ऐ मेरे ख़ुदा,

हिदायतें अता कर जो मुक़म्मल शफ्फाक़ कर दे
गफ़लत दिलों पे जो है छाई ऐ मेरे ख़ुदा..!!

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