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Barish / Rain Poetry

कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है

kahin pe sukha kahin pe charo simt paani

कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, हर एक शख्स …

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दूर तक छाए थे बादल और कहीं..

door tak chhaye the badal

दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न …

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फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे…

fool barse kahin shabnam kahin gauhar barse

फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे और इस दिल की तरफ़ बरसे तो पत्थर बरसे, कोई बादल …

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सावन को ज़रा खुल के बरसने की दुआ दो…

savan ko zara khul ke barasne ki dua do

सावन को ज़रा खुल के बरसने की दुआ दो हर फूल को गुलशन में महकने की दुआ दो, …

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बारिश की बरसती बूँदों ने जब दस्तक दी दरवाज़े पर…

Bazmeshayari_512X512

बारिश की बरसती बूँदों ने जब दस्तक दी दरवाज़े पर महसूस हुआ तुम आये हो, अंदाज़ तुम्हारे जैसा …

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फिर झूम उठा सावन फिर काली घटा छाई…

फिर झूम उठा सावन

फिर झूम उठा सावन फिर काली घटा छाई फिर दर्द ने करवट ली फिर याद तेरी आई, होंठो …

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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं…

Bazmeshayari_512X512

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहींतू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे …

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पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ…

Bazmeshayari_512X512

पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँधड़कन को अपने दिल की रुकता हुआ मैं देखूँ, पीने …

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हाल में अपने मगन

हाल में अपने मगन हो फ़िक्र ए आइंदा न हो

कभी अपने इश्क़ पे

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़ ए यार के

ऐ जुनूँ कुछ तो

ऐ जुनूँ कुछ तो खुले आख़िर मैं किस मंज़िल में हूँ

और कोई दम की

और कोई दम की मेहमाँ है गुज़र जाएगी रात

तो क्या ये तय

तो क्या ये तय है कि अब उम्र भर नहीं मिलना

बता ऐ अब्र मुसावात

बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता

बिछड़ कर उसका दिल

बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा

पराई आग पे रोटी

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा

देखो अभी लहू की

देखो अभी लहू की एक धार चल रही है

बदन और रूह में

बदन और रूह में झगड़ा पड़ा है

हर गली कूचे में

हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है

दिल की बात लबों

दिल की बात लबों पर ला कर…

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हाल में अपने मगन

हाल में अपने मगन हो फ़िक्र ए आइंदा न हो

कभी अपने इश्क़ पे

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़ ए यार के

ऐ जुनूँ कुछ तो

ऐ जुनूँ कुछ तो खुले आख़िर मैं किस मंज़िल में हूँ