मशवरे पर न कहीं धूप के चलने लग जाएँ
आदमी मोम बनें और पिघलने लग जाएँ,
जैसे माहौल बदल देती है मुस्कान तेरी
पैरहन देख के मौसम न बदलने लग जाएँ,
इस क़दर बुग़्ज़ दिलों में है कि मालूम नहीं
लोग कब किसके लिए ज़हर उगलने लग जाएँ,
देख कर रौनक़ ए बाज़ार में बच्चों का सब्र
अब ये ख़तरा है खिलौने न मचलने लग जाएँ,
हम भी गुलशन से निकल जाएँगे ख़ामोशी से
नए पौदे तो ज़रा फूलने फलने लग जाएँ,
मौत है भूक है कर्तब है कि क्या है जब लोग
दो सुतूनों से बंधी तार पे चलने लग जाएँ,
तुम बताना कि हसन ख़्वाब नहीं सच है ये
हम तुम्हें देख के जब आँख मसलने लग जाएँ..!!
एहतिशाम हसन