हर दिन है मुहब्बत का, हर रात मुहब्बत की
हम अहल ए मुहब्बत में, हर बात मुहब्बत की,
सीनों में उतरते हैं इल्हाम मुहब्बत के
आँखों से बरसती है बरसात मुहब्बत की,
हम दर्द के मारों का इतना सा हवाला है
तन्हाई है घर अपना, और ज़ात मुहब्बत की,
दौलत के ख़ुदाओं ने देखी ही नहीं शायद
दामन में ग़रीबों के, बहुतात मुहब्बत की,
इन ख़ाक नशीनों से रौनक है ज़माने की
जो बाँटते फिरते है, खैरात मुहब्बत की,
होती है मुकम्मल ये ईमान ब हर सूरत
क्या जीत मुहब्बत की, क्या मात मुहब्बत की,
हम लोग उठा लेगे, हर बोझ अज़ीयत का
हम लोग समेटेंगे, सौगात मुहब्बत की..!!