कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया…
कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते ये बादल उड़ के आते हैं …
कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते ये बादल उड़ के आते हैं …
पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना या फिर चलो तो राह के पत्थर …
गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी का जाम बाँधा है तलाश ए दर्द से मंज़िल …
नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है अपनी करतूत छुपाये हुए आ जाते है, …
कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, …
यूँ अपनी गज़लों में न जताता कि मोहब्बत क्या है गर मिलते तो कर के …
आयत ए हिज्र पढ़ी और रिहाई पाई हमने दानिस्ता मुहब्बत में जुदाई पाई, जिस्म ओ …
लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे महसूस हो रही है ख़ुद अपनी कमी …