वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है…

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है,

बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच तुझ पे न आएगी
ये ज़बाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है,

यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
तेरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है,

मैं ये मानता हूँ मेरे दीये तेरी आँधियों ने बुझा दिए
मगर एक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है,

मेरे फ़िक्र ओ फ़न तेरी अंजुमन न उरूज था न ज़वाल है
मेरे लब पे तेरा ही नाम था मेरे लब पे तेरा ही नाम है..!!

~बशीर बद्र

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