थी जिसकी जुस्तज़ू वो हकीक़त नहीं मिली…

थी जिसकी जुस्तज़ू वो हकीक़त नहीं मिली
इन बस्तियों में हमको रफ़ाक़त नहीं मिली,

अबतक हूँ इस गुमाँ में कि हम भी है दहर में
इस वहम से निज़ात की सूरत नहीं मिली,

रहता था उसके साथ बहुत देर तक मगर
उन रोज़ ओ शब में मुझको ये फ़ुर्सत नहीं मिली,

कहना था जिसको उससे किसी वक़्त में मुझे
उस बात के कलाम की मोहलत नहीं मिली,

कुछ दिन के बाद उससे जुदा हो गए मुनीर
उस बेवफ़ा से अपनी तबीयत नहीं मिली..!!

~मुनीर नियाज़ी

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