जिस्म का बोझ उठाए हुए चलते रहिए…

जिस्म का बोझ उठाए हुए चलते रहिए
धूप में बर्फ़ की मानिंद पिघलते रहिए,

ये तबस्सुम तो है चेहरों की सजावट के लिए
वर्ना एहसास वो दोज़ख़ है कि जलते रहिए,

अब थकन पाँव की ज़ंजीर बनी जाती है
राह का ख़ौफ़ ये कहता है कि चलते रहिए,

ज़िंदगी भीक भी देती है तो क़ीमत ले कर
रोज़ फ़रियाद का अंदाज़ बदलते रहिए..!!

~मेराज फ़ैज़ाबादी

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