दूर ख्वाबों से मुहब्बत से किनारा कर के
जैसे गुजरेगी गुजारेंगे गुज़ारा कर के,
अब तो दावा भी वो पहले सा नहीं है हम को
क्या करें इश्क मेरी जान दोबारा कर के,
कैसी उठती है कसक वही समझ सकता है
जिस ने देखा हो मुहब्बत में खसारा कर के,
तुम से कुछ और ताअल्लुक़ तो तो नहीं इस के सिवा
ताने देते है मुझे लोग तुम्हारा कह के,
जान का रोग बनेगा वही लिख देता हूँ
जिसको चाहोगे बहुत जान से प्यारा कर के,
तुम समझते हो भूलाने से कोई भूल सकता है ?
हम ने देखा है मेरे हमदम ये चारा कर के..!!