पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ…

पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ
धड़कन को अपने दिल की रुकता हुआ मैं देखूँ,

पीने का शौक़ मुझको हरगिज़ नहीं है मगर
क़दमों को मयकदे पे रुकता हुआ मैं देखूँ,

या रब करम की बारिश एक बार ऐसी कर दे
हर फूल को चमन में हँसता हुआ मैं देखूँ,

जब भी उठे दुआओ की खातिर ये हाथ मेरे
आँखों को आँसूओ से भरता हुआ मैं देखूँ,

दोस्तों ! मेरे रब का कितना करम है मुझ पे
ख़ुशबूओ को संग अपने चलता हुआ मैं देखूँ..!!

Leave a Reply

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: