मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़…
मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़ उठाये कौन ? जल रही बस्तियाँ,आह ओ सोग मनाये …
मज़लूमों के हक़ मे अब आवाज़ उठाये कौन ? जल रही बस्तियाँ,आह ओ सोग मनाये …
ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं, हो रहा हूँ …
ज़ुल्म की हद ए इंतेहा को मिटाने का वक़्त है अब मज़लूमों का साथ निभाने …
कभी झूठे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते ये बादल उड़ के आते हैं …
पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना या फिर चलो तो राह के पत्थर …
गमों का लुत्फ़ उठाया है खुशी का जाम बाँधा है तलाश ए दर्द से मंज़िल …
नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है अपनी करतूत छुपाये हुए आ जाते है, …
कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है, …