कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है

कहीं पे सूखा कहीं चारों सिम्त पानी है
गरीब लोगों पे क़ुदरत की मेहरबानी है,

हर एक शख्स की अपनी अज़ब कहानी है
ये लग रहा है कि अब सर से ऊपर पानी है,

वो लोग भी तो महल पे महल बनाते रहे
जिन्हें ख़बर थी कि ये क़ायनात फ़ानी है,

लगी हुई है उसी की तलाश में दुनियाँ
पता है जिसका न जिसकी कोई निशानी है,

ये और बात है कि हम साथ साथ रहते है
दिलों में दुश्मनी लेकिन बहुत पुरानी है..!!

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