पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा,
अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया
अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा,
फ़रेब दे के तेरा जिस्म जीत लूँ लेकिन
मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा,
गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ
नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊँगा,
मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊँ
तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊँगा,
तुम्हें पता तो चले बेज़बान चीज़ का दुख
मैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा,
मैं एक फ़िल्म बनाऊँगा अपने ‘सरवत’ पर
और इस में रेल की पटरी नहीं बनाऊँगा..!!
~तहज़ीब हाफ़ी