बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा
वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा,
ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत ए दुनियाँ
किसी फ़कीर की मुट्ठी में वो रतन देखा,
मुझे दिखा है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा,
बड़ा न छोटा कोई फ़र्क बस नज़र का है
सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा,
ज़बाँ है और , बयाँ और, उसका मतलब और
अज़ीब आज की दुनियाँ का व्याकरन देखा,
लुटेरे डाकू भी अब अपने पे नाज़ करने लगे
उन्होंने आज जो संतो का आचरन देखा,
जो सादगी है कुहन में हमारे ऐ नीरज
किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा..!!
~गोपालदास नीरज