दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ

दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ
देखिए रूह से कब दाग़ पुराने जाएँ,

हम को बस तेरी ही चौखट पे पड़े रहना है
तुझसे बिछ्ड़ें न किसी और ठिकाने जाएँ,

अपनी दीवार ए अना आप ही कर के मिस्मार
अपने रूठों को चलो आज मनाने जाएँ,

जाने क्या राज़ छुपा है तेरी सालारी में
तू जहाँ जाए तेरे पीछे ज़माने जाएँ,

रहें गुमनाम तो बस तुझ से ही मंसूब रहें
जाने जाएँ तो तेरे नाम से जाने जाएँ,

देख पाएँगे उन आँखों में उदासी कैसे
अपने दुखड़े न उन को सुनाने जाएँ..!!

~ज़िया ज़मीर

Leave a Reply

error: Content is protected !!