धोखे पे धोखे इस तरह खाते चले गए

धोखे पे धोखे इस तरह खाते चले गए
हम दुश्मनों को दोस्त बनाते चले गए,

हर ज़ख्म ज़िंदगी का गले से लगा लिया
हम ज़िंदगी से यूँ ही निभाते चले गए,

वो नफ़रतों का बोझ लिए घूमते रहे
हम चाहतों को उन पे लुटाते चले गए,

जो ख़्वाब ज़िंदगी की हक़ीक़त न बन सका
उसके ही हसीं फ़रेब में आते चले गए,

दर्द ए दिल को छुपाना आसाँ न था मगर
हम आड़ मे हँसी की छुपाते चले गए..!!

~रुबीना मुमताज़ रूबी

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