अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो

अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो
गुनाह के बोझ से लदे काँधों को सलाम करो,

पहचान गर बनानी हो तुम्हें अपनी इस भीड़ में
ख़ुद को न दो तवज्जों दूसरों को बदनाम करो,

कोई सिक्को का कोई कुर्सी का है गुलाम यहाँ
जो आ ही गए हो तुम भी तो कुछ काम करो,

गर चाहत है तुम्हे भी चाभी ए तरक्की की तो
रोज़ सुबह ख़ुद से और यारों से धोखे शाम करो,

यारों तुम को क्यूँ पड़ गया गैरत का दौरा अभी
शाम रंगीन है महफ़िल जवाँ चलो जाम भरो..!!

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