पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही…

पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही वहशत करेगा
तुझ से वाक़िफ़ हूँ मेरी जाँ तू मोहब्बत करेगा,

मैं चला जाऊँगा दुनिया से सिकंदर की तरह
अगली सदियों पे मेरा नाम हुकूमत करेगा,

पेश है दूसरे आलम में भी तन्हा रहना
मैं ने सोचा था तू दुनिया से बग़ावत करेगा,

दिल तेरी राह ए अज़िय्यत से पलटने को है
क्या तू अब भी न मेरा ख़्वाब हक़ीक़त करेगा,

तू मेरी मौत की तस्दीक़ नहीं कर सकता
छुएगा तो मुझे और दिल मेरा हरकत करेगा,

वाहिमा सहरा नवर्दी का मुदल्लल नहीं है
कोई होगा मेरे दिल में तभी हिजरत करेगा,

वो जो आफ़ाक़ चराग़ों की लवें तोड़ता है
अपना सूरज भी उसी हाथ पे बैअत करेगा..!!

~मक़सूद आफ़ाक़

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