तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी…

तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी
उस पर ये क़यामत कर बैठे,

बेताबी ए दिल जब हद से बढ़ी
घबड़ा के मुहब्बत कर बैठे,

आँखों में छलकते है आँसूं
दिल चुपके चुपके रोता है,

वो बात हमारे बस की न थी
जिस बात की हिम्मत कर बैठे,

गम हमने ख़ुशी से मोल लिया
उस पर भी हुई ये नादानी,

जब दिल की उम्मीदें टूट गई
क़िस्मत से शिकायत कर बैठे..!!

~शकील बदायूनी

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