अपनी ज़रूरत के मुताबिक़….

अपनी ज़रूरत के मुताबिक़
लोगो के जज़्बात बदल जाते है,

इंसानों की इन्हें फिक़र नहीं
मगर ये हैवानो की खैर मनाते है,

इनके रंग बदलने का हुनर देख
ख़ुद गिरगिट भी शरमा जाते है,

ऐसे इंसानियत के दुश्मन भी
अपने आप को इन्सान बताते है,

कोठे और दलालों के मालिक भी
नारी उत्थान का नारा लगाते है,

साडी बाँटते दिन के उजालो में
वही रातो में दुशासन बन जाते है..!!

~नवाब ए हिन्द

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