आज जो तुम्हारी नज़र में एक तवायफ़ सी है वो…

आज जो तुम्हारी नज़र में एक तवायफ़ सी है वो
तुम्हारी ही तो बनाई हुई बेअदब रिवायत सी है वो,

कभी ज़माने से जो अपने दिल की कहती ही नहीं
लबो पे अनकही ठहरी हुई शिकायत सी है वो,

किसी के लिए देखो तो इस जहाँ में नफ़रत सी है
और किसी के लिए शायद एक इबादत सी है वो,

ऐसा सबक़ जिसको हर कोई यहाँ पढ़ नहीं सकता
तक़दीर के हाथों लिखी हुई दर्द की इबारत सी है वो,

उसके ग़मों की दास्ताँ कोई समझेगा भी तो कैसे ?
अश्क ए ख़ूनी से लिखी हुई एक लिखावट सी है वो..!!

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