अपनों से कोई बात छुपाई नहीं जाती
ग़ैरों को कभी दिल की बताई नहीं जाती,
लग जाती है ग़लती से कभी आग व लेकिन
ना दीदा ओ दानिस्ता बुझाई नहीं जाती,
तालीम सिखाती नहीं आलिम को सलीक़ा
तहज़ीब तो जाहिल को सिखाई नहीं जाती,
रुख़ हवाओं का मुआफ़िक़ भी हो फिर भी
तूफ़ान में क़िंदील जलाई नहीं जाती,
सीधी सी है ये बात मियाँ ऐसे मुसलसल
रोने से मुक़द्दर की बुराई नहीं जाती,
ऐ साहिब ए तदबीर इशारों से तो हरगिज़
दीवार कराहत की गिराई नहीं जाती,
मज़लूम के बहते हुए पुर जोश लहू से
तस्वीर मोहब्बत की बनाई नहीं जाती,
अबरार समझते नहीं आसान है बिल्कुल
मुश्किल में पड़ी जान छुड़ाई नहीं जाती..!!
~ख़ालिद अबरार