हमारे हाफ़िज़े बेकार हो गए साहिब

हमारे हाफ़िज़े बेकार हो गए साहिब
जवाब और भी दुश्वार हो गए साहिब,

उसे भी शौक़ था तस्वीर में उतरने का
तो हम भी शौक़ से दीवार हो गए साहिब,

तीरे लिबास के रंगों में खो गई फ़ितरत
ये फूल शूल तो बेकार हो गए साहिब,

गले लगा के उसे ख़्वाब में बहुत रोए
और इतना रोए कि बेदार हो गए साहिब,

हमारी रूह परिंदों को सौंप दी जाए
कि ये बदन तो गुनाहगार हो गए साहिब,

नज़र मिलाई तो एक आग ने लपेट लिया
बदन जला ये तो गुलज़ार हो गए साहिब,

चराग दफ्न किए थे नदीम क़ब्रों में
ज़मीं से चाँद नमूदार हो गए साहिब..!!

~नदीम भाभा

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