ख़ुशी जानते हैं न ग़म जानते हैं
जो उनकी रज़ा हो वो हम जानते हैं,
जो कुछ चार तिनकों को हम जानते हैं
वो गुलचीन ओ सय्याद कम जानते हैं,
तुम्हारे ही जल्वों की हम रौशनी को
तजल्ली ए दैर ओ हरम जानते हैं,
मैं क़ातिल न महशर में समझूँ भी तो क्या
तुम्हें सब ख़ुदा की क़सम जानते हैं,
मेरे ख़ाक ए दिल का पता भी नहीं है
वो इतने सितम को भी कम जानते हैं,
ख़ुदा को ख़ुदा हम समझते हैं वाइ’ज़
मगर हाँ सनम को सनम जानते हैं,
करेंगे न अर्ज़ ए तमन्ना कि हम ख़ुद
मोहब्बत का अपनी भरम जानते हैं,
वही कुछ समझते हैं असरार ए हस्ती
जो हस्ती को अपनी अदम जानते हैं,
मता ए दो आलम समझते हैं हम भी
मगर चार तिनकों से कम जानते हैं,
कहीं राज़ ए उल्फ़त भी होता है ज़ाहिर
कहें क्यों जो कुछ तुमको हम जानते हैं,
ख़ुदा को वही ख़ूब पहचानते हैं
तुम्हें जो ख़ुदा की क़सम जानते हैं,
खुली हैं दम ए नज़अ आँखें जो अफ़्क़र
अभी तक वो आँखों में दम जानते हैं..!!
~अफ़्क़र मोहानी