ये मरहले भी मोहब्बत के बाब में आए
बिछड़ गए थे जो हमसे वो ख़्वाब में आए,
वो जिसकी राह में हमने बिछाए ग़ुंचा ओ गुल
उसी मकान से पत्थर जवाब में आए ,
न जिसको दस्त ए हिनाई का तेरे लम्स मिले
कहाँ से बू ए वफ़ा उस गुलाब में आए,
तुम्हारे हुस्न ए नज़र से हैं मोतबर हम भी
जो हम किसी निगह ए इंतिख़ाब में आए,
अगरचे मिस्ल है आब ए रवाँ के रेग ए सराब
कहाँ से शोरिश ए दरिया सराब में आए,
तेरे ख़याल का पैकर सजा है सीने में
हम इस तरह तेरी चश्म ए ख़ुश आब में आए,
हवा के दोश पे उसने लिखा है नाम ए रईस
ये सुन के लोग बहुत पेच ओ ताब में आए..!!
रईस वारसी