ये विसाल ओ हिज़्र का मसअला तो मेरी समझ में न आ सका
कभी कोई मुझको न पा सका कभी मैं किसी को न पा सका,
कई बस्तियों को उलट चुका कोई ताब इसकी न ला सका
मगर आँधियों का ये सिलसिला तेरा नक्श ए पा न मिटा सका,
मेरी दास्ताँ भी अज़ीब है वो क़दम क़दम मेरे साथ था
जिसे राज़ ए दिल न बता सका जिसे दाग़ ए दिल न दिखा सका,
न ही बिजलियाँ न ही बारिशें न ही दुश्मनों की वो साजिशें
भला क्या सबब है बता ज़रा जो तू आज भी नहीं आ सका,
कभी रौशनी की तलब रही कभी हौसलों की कमी रही
मैं चराग़ को तेरे नाम के न जला सका न बुझा सका,
वो जो अक्स रंग ए हिलाल थी वो जो आप अपनी मिसाल थी
मुझे आज तक है ख़लिश यही तुझे वो गज़ल न सुना सका..!!
~हिलाल फ़रीद