जो पत्थरो में जुबां ढूँढे हम वो चीज है दोस्त
है मर्ज़ ख़्वाब सजाना तो हम मरीज़ है दोस्त,
हमें कहानियाँ लिखने दो बहते पानी पर
ये बेवकूफियाँ हमको बहुत अजीज़ है दोस्त,
जुनूँ के रास्ते में जिसने भी ठोकरे खाई हो
उसे पता है कि ये ठोकरे बहुत लजीज़ है दोस्त,
नसीहते नहीं सुनते न सबक़ लेते है
मैं क्या करूँ कि मेरे ख़्वाब बड़े बदतमीज़ है दोस्त,
नहीं है हम कोई ज़ेवर मगर पहन लो हमें
बदन ढकेंगे तेरा हम तेरी कमीज़ है दोस्त..!!