छोड़ के सब कुछ फक़त तुम इन्सान बनो…

बना के भेजा था उस रब ने अपना तर्जुमान तुम्हे
छोड़ के सब कुछ फक़त तुम इन्सान बनो,

ये रुस्वाइयाँ और तल्खियाँ क्यों बिखेर रहे हो ?
निखारो ख़ुद को अलग एक पहचान बनो,

हवस परस्ती का लिबास क्यूँ पहने हुए हो तुम ?
कभी तो निकलो किसी के लिए मेहरबान बनो,

ये मर्द ए मोमिन की शान नहीं है कि झूठ बोले
बस करो अब तो इस मिट्टी पर कुछ एहसान बनो,

ये बद दीयानती और रिश्वत जैसी बुराइयाँ क्यों समा गई तुम में ?
उठो इस ख़्वाब ए गफ़लत से और ख़ुदा का फ़रमान बनो,

फिर भी जो गर न हो अज्म कुछ अज़ीम करने का
तो छोड़ के सब कुछ फक़त तुम इन्सान बनो..!!

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