हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है
किसी ने जिस्म किसी ने ज़मीर बेचा है,
नहीं रही बशीरत की ख़ूबी इंसा में
आसास ए अनस का सब ने ख़मीर बेचा है,
मज़ाक उड़ा मज़हब का अहल ए इल्म ने
जब से आयतों को सर ए बाज़ार बेचा है,
इरम भी न मिली जिस के हसूल की खातिर
समझ कर ईमां को सब ने हक़ीर बेचा है,
बस एक ओहदे की ख़ातिर अमीर ए लश्कर ने
मुखालफिन को एक एक तीर बेचा है,
बुजुर्ग के हुआ फैज़ान का यहाँ सौदा
कि पैरोकारों ने अपना ही पीर बेचा है..!!