रंगों की आड़ में खुनी खेल, ये इंसानियत क्या जाने ?

रंगों की आड़ में खुनी खेल, ये इंसानियत क्या जाने ?
हरा, भगवा में डूबे हुए केसरिया का मोल क्या जाने ?

ज़मीने बाँटते फिरते है, आसमान को बाँटे तो माने
अलग किए इन्सान बड़े, अब परिंदों को छाँटें तो माने,

इंसानी लिबास देख कर ऐ हिन्दू मुस्लिम करने वालो
वक़्त ए मौलूद आदम क्या ? मज़हब पहचानो तो माने,

उस खून का मज़हब क्या ? जो तुमको चढ़ाया जाता है
गैर मज़हबी खून कभी तुम डॉक्टर को लौटाओ तो माने,

जो ईद का भी है, करवा चौथ का भी उस चाँद से सीखो
नफ़रत मिटा कर, पैगाम ए मुहब्बत फैलाओ तो माने..!!

~नवाब ए हिन्द

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