ख़ुदा से वक़्त ए दुआ हम सवाल कर बैठे
वो बुत भी दिल को ज़रा अब संभाल कर बैठे,
किया है आँख की गर्दिश से पीस कर सुर्मा
वो बे चले ही मुझे पाएमाल कर बैठे,
तमाम उम्र परेशाँ रखा दम ए आख़िर
बला से मेरी परेशाँ वो बाल कर बैठे,
चले हैं तूर को मूसा मगर हमें मतलब
कि हम बुतों ही में ये देखभाल कर बैठे,
रवाँ हैं अश्क किसी के फ़िराक़ में या रब
कोई न पुर्सिश ए वजह ए मलाल कर बैठे,
बुरा हो उल्फ़त ए ख़ूबाँ का हमनशीं हम तो
शबाब ही में बुरा अपना हाल कर बैठे,
न इल्म है न ज़बाँ है तो किस लिए महरूम
तुम अपने आपको शाइर ख़याल कर बैठे..!!
~तिलोकचंद महरूम