हक़ीक़तों में बदलता सराब चुभने लगा

हक़ीक़तों में बदलता सराब चुभने लगा
जो बन सका न हक़ीक़त वो ख़्वाब चुभने लगा,

सवाल सख़्त हमारा था पर ख़ुलूस बहुत
तुम्हारा फूल सा लेकिन जवाब चुभने लगा,

जवान बेटी जहेज़ और बढ़ती महँगाई
ज़ईफ़ बाप के दिल में शबाब चुभने लगा,

ज़रा सा ज़िक्र भी जिस में नहीं था मंज़िल का
हमें वो राहनुमा का ख़िताब चुभने लगा,

किताब ए अस्र में अग़राज़ की वजह से असद
जो लिख सका न मुसन्निफ़ वो बाब चुभने लगा..!!

~असद रज़ा

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