एक बेवा की आस लगती है

एक बेवा की आस लगती है
ज़िंदगी क्यों उदास लगती है,

हर तरफ़ छाई घोर तारीकी
रौशनी की असास लगती है,

पी रहा हूँ हनूज़ अश्क ए ग़म
बहर ए ग़म को भी प्यास लगती है,

लाख पहनाओ दोस्ती की क़बा
दुश्मनी बे लिबास लगती है,

मौत के सामने हयात असद
सूरत ए इल्तिमास लगती है..!!

~असद रज़ा

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