हमारे मुल्क में तमाशे अज़ीब हो रहे है
अमीर और अमीर, ग़रीब और ग़रीब हो रहे है,
मुल्क की खातिर ना अहल ए वतन की खातिर
दुश्मन ए जाँ एक दूसरे के क़रीब हो रहे है,
शाद है वो सब जो डॉलर्स में खेलते है
बुरे हम अहल ए वतन के मगर नसीब हो रहे है,
गिले शिकवे सब भूला कर शेर ओ शुकर हुए है
हम जिनकी खातिर एक दूसरे के रकीब हो रहे है,
कब, कैसे और कौन बदलेगा मेरे मुल्क की तक़दीर
हालात देख कर अश्क ख़ूँ के दिल से शकीब हो रहे है..!!