शिकवा भी ज़फ़ा का कैसे करे एक नाज़ुक सी दुश्वारी है
आगाज़ ए वफ़ा ख़ुद हमने किया था पहली भूल हमारी है,
दुःख तुमको जब जब पहुँचा है ख़ुद हमने आँसू पोछें है
अब दिल पे हमारे चोट लगी है अबके तुम्हारी बारी है,
बिन खेले बाज़ी जीत के भी तुम हमसे शाकी रहते हो
और हमको देखो हमने तो ख़ुद जान के बाज़ी हारी है,
कुछ दर्द ए तन्हा, कुछ फ़िक्र ए जहाँ कुछ शर्म ए खता, कुछ खौफ़ ए सज़ा
एक बोझ उठाये फिरता हूँ और बोझ भी कितना भारी है,
जो ज़ख्म ए कारी लगा है दिल पर, पहले उसकी फ़िक्र करो
ये बाद में देखा जाएगा, ये किस की कार गुज़ारी है,
जो साहब घर घर मेरे बाबत ज़हर उगलते फिरते है
वो सिर्फ मेरे हमसाये नहीं है, उनसे क़राबतदारी है..!!