इंशा जी उठा अब कूच करो, इस शहर में जी का लगाना क्या
वहशी को सुकूं से क्या मतलब, जोगी का नगर में ठिकाना क्या ?
इस दिल के दरीदा दामन को देखो तो सही सोचो तो सही
जिस झोली में सौ छेद हुए, उस झोली का फैलाना क्या ?
शब बीती चाँद भी डूब चला, जंज़ीर पड़ी दरवाज़े में
क्यूँ देर गए घर आये हो, सजनी से करोगे बहाना क्या ?
फिर हिज़्र की लम्बी रात मियाँ, संजोग की तो ही एक घड़ी
जो दिल में है लब पर आने दो, शर्माना क्या, घबराना क्या ?
उस रोज जो उनको देखा है, अब ख़्वाब का आलम लगता है
उस रोज से उनसे बात हुई, वो बात भी थी अफ़साना क्या ?
उस हुस्न के सच्चे मोती को, हम देख सकें पर छू न सकें
जिसे देख सकें पर छू न सकें, वो दौलत क्या वो खज़ाना क्या ??