कितना बेकार तमन्ना का सफ़र होता है…

कितना बेकार तमन्ना का सफ़र होता है
कल की उम्मीद पे हर आज बसर होता है,

यूँ मैं सहमा हुआ घबराया हुआ रहता हूँ
जैसे हर वक़्त किसी बात का डर होता है,

दिन गुज़रता है तो लगता है बड़ा काम हुआ
रात कटती है तो इक माअरका सर होता है,

लोग कहते हैं मुक़द्दर का नविश्ता जिसको
हम नहीं मानते हर चंद मगर होता है,

‘सैफ़’ इस दौर में इतना भी ग़नीमत समझो
क़ैद में रौज़न ए दीवार भी दर होता है..!!

~सैफ़ुद्दीन सैफ़

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