रंग ए नफ़रत तेरे दिल से उतरता है…

रंग ए नफ़रत तेरे दिल से उतरता है कभी ?
एक रवैया है मुरव्वत, उसे बरता है कभी ?

खिज़र बन के जो मुझे पार लगा देता है
मेरी कश्ती में वो सुराक़ भी करता है कभी,

काँच पर बाल जो पड़ जाए निकलता है कभी ?
फूल अगर दिल में खिला हो बिखरता है कभी ?

लोग तो नाम कमाने में लगे रहते है
आदमी काम से ज़िन्दा हो तो मरता है कभी,

वो उभरता है मेरी याद से मोती की तरह
तो टूटते तारे की मानिंद गुज़रता है कभी,

सुखनवर को खून से सींचना पड़ता है लफ्ज़ो को
सिर्फ़ क़लम की मेहनत से शेर सँवरता है कभी..??

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